स्वामी विवेकानंद हिन्दू संस्कृति के प्रतीक थे: उपराष्ट्रपति 


चैन्नई , 12 जनवरी । उपराष्ट्रपति  एम. वेंकैया नायडू ने आज युवाओं से ऐसे भारत के निर्माण की दिशा में काम करने का आह्वान किया जो जाति, मजहब और लिंग के आधार पर भूख, भेदभाव और असमानताओं से मुक्त हो।


उपराष्ट्रपति ने आज चेन्नई में रामकृष्ण मिशन की तमिल मासिक पत्रिका ‘श्री रामकृष्ण विजयम’ के शताब्दी समारोह में कहा कि भारत के प्रति पूरी दुनिया में नए सिरे से रुचि बढ़ी है क्योंकि देश 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इस मौके पर श्री नायडू ने कहा कि स्वामी विवेकानंद का कालातीत दृष्टिकोण और उनके उपदेश व्यक्तिगत विकास और राष्ट्र की सामूहिक उन्नति के लिए मार्गदर्शक बनी रहेंगी।


 नायडू ने स्वामी विवेकानंद को हिंदू संस्कृति का अवतार और एक सामाजिक सुधारक बताया जो धार्मिक हठधर्मिता के खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि विवेकानंद जाति और पंथ से हटकर मानवता के उत्थान में विश्वास करते थे। स्वामी विवेकानंद के जीवन और शिक्षाओं से प्रेरणा लेने का आह्वान करते हुए उन्होंने युवाओं से देश की प्रगति, दलितों के कल्याण और गरीबों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हमारे पास मजबूत, स्थिर और अधिक समृद्ध राष्ट्र बनने के अवसर हैं।


   नायडू ने कहा कि स्वामी विवेकानंद गरीबों की दयनीय जीवन स्थितियों से पीड़ित थे और उन्होंने ‘पहले रोटी और फिर बाद में धर्म’ को प्राथमिकता देने की बात कही।


उन्होंने कहा कि विवेकानंद को भी लगता था कि जब तक भारत की जनता शिक्षित नहीं होगी, उन्हें पेट भर खाना नहीं मिलेगा, और उनकी अच्छी तरह से देखभाल नहीं की जाएगी तबतक किसी भी तरह की राजनीति का कोई फायदा नहीं होगा।