जयपुर, 12 जून राष्ट्रीय किसान महापंचायत ने कहा है कि भारत सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना सहित किसानो को उनकी उपजों के दिलाने वाली मंडी सहित सभी संस्थाओं को समाप्त करने पर उतारू है ।
राष्ट्रीय किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने आज कहा कि केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के वक्तव्य से यह सकेंत मिल गया है कि ये देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के नाम पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना से वंचित करना चाहते है ।
उन्होने कहा कि यह स्थिति तो तब है जब वर्ष 2015 में शांता कुमार समिति के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य से लाभान्वित होने वाली संख्या मात्रा 6 प्रतिशत है, यानि 94 प्रतिशत किसान इस योजना से बाहर अपनी उपज खुले बाजार में बेचने को मजबूर है, फिर भी केन्द्रीय मंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय दरों के मुकाबले न्यूनतम समर्थन मूल्यों को अधिक बताया है और इससे देश में आर्थिक संकट उत्पन्न होने की बात कही है ।
उन्होने कहा कि सरकार को इस विषय पर श्वेत पत्र लाकर सत्यता जनता के सामने रखनी चाहिए किन्तु सरकार गोल मोल वक्तव्य देकर किसानो को उनकी उपजों के “न्यूनतम” मूल्य भी नहीं देना चाहती ।
जाट ने कहा कि आश्चर्य है कि 2 वर्ष पहले देश के दलहन उत्पादकों को सरकार उनका लागत मूल्य भी देने को तैयार नहीं थी, यथा मूंग की उपज 54 रुपये प्रति किलो में भी सरकार ने कुल उत्पादन में से 20% से कम खरीदी थी । सरकार ने उसी समय विदेशों से 1 किलों दाल का 104 रुपये चुकाकर आयात की , इसप्रकार सरकार विदेशों में तो दोगुने दाम देने को तैयार है, फिर यह राशि कहा जा रही है यह भी जांच का विषय है ।
किसान महापंचायत ने कहा कि एक वर्ष पूर्व सरकार ने खाने के तेल के नाम पर अधिकांश मात्रा में पाम आयल मंगाने पर 75,000 करोड़ रुपये तथा दलों के आयत पर 28.3 हजार करोड़ रुपये खर्च किये थे , खास बात यह है कि पाम आयल स्वाद एवं गंध हीन पेड़ों का तरल पदार्थ है, जिसे खाने के तेल के नाम पर देश की जनता को परोसा जाता है । यह राशि खर्च करने पर देश में आर्थिक संकट उत्पन्न होने की सरकार चर्चा नहीं करती ।
उन्होने कहा कि वर्ष 2004-05 से 2014-15 तक कॉर्पोरेट जगत को सरकार ने 59 लाख करोड़ रुपये की छूट दी थी तथा अभी भी भगोड़ों सहित अनेक बड़े पूजी वालों के लगभग 5 लाख करोड़ रुपये के ऋणों को बट्टे खाते में डाला गया, तब भी सरकार को देश की जनता पर संकट का आभास नहीं हुआ ।
जाट ने कहा कि प्रतीत होता है कि सरकार देश के अन्नदाताओं को उनके पसीने के आधार पर उनका श्रम मूल्य भी देना नहीं चाहती जबकि संविधान ने श्रम मूल्य देने का उल्लेख है । उन्होने कहा कि देश में मेट्रो जैसे अनेक जनकल्याण के नाम पर घाटे में चलते है लेकिन सरकार वहां अर्थव्यवस्था के संकट का प्रश्न खड़ा नहीं करती , बल्कि सरकार एक राष्ट्र एक बाजार की आड में किसानो के 22 उपजों के घोषित होने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्यों को बन्द करना चाहती है इस वक्तव्य से एक राष्ट्र एक बाजार की वास्तविकता सामने आकर सरकार की परते खुलने लगी है ।