नईदिल्ली,24अगस्त:आज मानवता इस शताब्दी की सबसे भयावह कोरोना महामारी से जूझ रही है ׀ इस महामारी ने मानवता को गहरी चोट पहुंचाई है ׀
इस पीड़ादायक दौर में ,बौद्ध दार्शनिक एवं शांति कार्यकर्ताडाo दाइसाकु इकेदा के संयुक्त राष्ट्र को दिएगये वार्षिक प्रस्ताव पर आयोजित एक संगोष्ठी में भारत के प्रबुद्ध वर्गने विश्व को एक नई दिशा अपनाने का आग्रह किया।
प्राचीन भारतीय ज्ञान एवं करुणा पर आधारित अपने नवीनतम शांति प्रस्ताव, जिसका शीर्षक है “ अपने साझे भविष्य की ओर : मानव एकजुटता के युग का निर्माण ’’ में डाo इकेदा ने दुनिया के समस्त राष्ट्रों से प्राकृतिक आपदाओंऔर जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों का सामना करने के लिए अपनी साझी विरासत को पहचानने का आग्रह किया है।
सोका गाक्काई इंटरनेशनल(SGI) के अध्यक्षडाo इकेदा , प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र को एक शांति प्रस्ताव प्रस्तुत करते हैं। अपने इस प्रस्ताव में उन्होंने विश्व के सम्मुख ग्लोबल वार्मिंग औरराष्ट्रों के बीच परस्पर व्यापारिक टकराव जैसी ज्वलंतएवं कष्टप्रद समस्याओं के व्यवहारिक हल की रूपरेखा प्रस्तुत की है।
SGI से संबद्ध भारतीय संस्था भारत सोका गाक्काई(BSG) ने इसशांति संगोष्ठी का आयोजनवेबिनार विधि से पहली बार किया है। इकेदा कहतेहैं, “खतरों के साये में रहने वाले लोग हम से अलग नहीं हैं,यहीतथ्यसांझे जीवन के लक्ष्य का आधार है।’’
शांति संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि ऐसी वैश्विक एकजुटता का आरंभ मूल भूत मानवीय मूल्यों को पुर्नजागृत कर होना चाहिए।
डाoआदित्य शास्त्री, कुलपति वनस्थली विद्यापीठ ने कहा “आज विश्व को सत्य, प्रेम और करुणा रूपी मूल्यों को आत्मसाध करने वाले युवाओंकी आवश्यकता है।ऐसेयुवा जो समावेशी विचारधारा के हों, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हों, सद्भाव एवं विश्व शांति को बढ़ावा देने वाले हों , गिरे हुए को गले लगाने वाले हों तथा अच्छे इंसान हों।’’उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के बीच किसी भी प्रकार की दूरीको पाटने के लिए सार्वभौमिक शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया।
मुख्य वक्ता पद्म विभूषण डाo रघुनाथ माशेलकर ने कहा, “हमारे शांतिपूर्ण भविष्य के निर्माण के लिए एक ऐसे क्रान्तिकारी समावेशी नवाचार की आवश्यकता है , जो आय में असमानता के बावजूद ,पहुंच और समानता का जादू पैदा कर सके ।’’
अपने शांति प्रस्ताव में, डाo दाइसाकु इकेदा का कहना है कि दुनिया को प्राकृतिक आपदा और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।इन्हींमुद्दों की वजह से लोगों को अपने घरों और समुदाय को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है। ऐसे घर जहां वे लंबे अरसे से रह रहे थे।
वे कहते हैं, “घर और जमीन से संबंध टूटना और उससे जुड़ी दु:ख की भावनाएं,भूकंप और सूनामी जैसी बड़ी आपदाओं का एक अपरिहार्य पहलू है।स्वजनो एवं मित्रों से अचानक बिछुड़ने का दर्द वास्तव में असहनीय होता है। पीड़ा के इस दौर में पूरे समाज को एक साथ खड़े होकर उस व्यक्ति का साथ देना चाहिए।’’
पूर्व राजदूत तथा ब्लूमिंगटन स्थित इंडियाना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरराजेंद्र अभ्यंकर ने इन विचारों का समर्थन करते हुए कहा “समस्त राष्ट्रोंऔर लोगों को एक जुट होकर काम करने की परिस्थितियां तभी जन्म लेंगी, जब लोगों में संकट के प्रति साझी भावना (संवदेनशीलता ) जागृत होगी ।’’
प्रभावित लोगों के लिए इकेदा की चिंता को दोहरातेहुए, भारतीय जलवायु सहयोग की कार्यकारी निदेशिका एवं सतत विकास की अध्यक्षा श्लोका नाथ ने कहा कि उद्देश्यपूर्ण परिवर्तन के लिए एक साझे दृष्टिकोण और लक्ष्य की आवश्यकता है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा “आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि, जिस किसी को भी आपने अपने उद्देश्य कि पूर्ति के लिए चुना है, वह खुलेमन से उसी दिशा में सोचे। केवल ऐसा कर ही आप जलवायु परिवर्तन से निपट सकते है।हम जानते हैंस्पष्तः कोई भी सुरक्षित नहीं है और यह, हम सभी की जिम्मेदारी है। अब समय आ गया है तथा हम सभी को एक साथ आना होगा।’’
बी एस जी अध्यक्ष विशेष गुप्ता ने बदलाव लाने के लिए युवाओं को संवेदनशील बनाने के महत्व पर प्रकाश डाला।उन्होने कहा “युवा अपनी नयी सोच से परिस्थितयों को बदलने की क्षमता रखते हैं और स्वाभाविकरूप से शांति के लिए काम करते है । उनकी शक्ति तथा जोश पूरी मानव जाति के अनंत भविष्य के लिए असीम विकास का मार्ग प्रज्वलित कर सकती है।’’