ज़ी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2020 की शुरुआत


जयपुरJaipur , 24 जनवरी।गुलाबी नगरी जयपुर की एक सर्द सुबह, ज़ी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल Zee Jaipur Literature Festival के 13वें संस्करण की शुरुआत पूरे उल्लास और उमंग के साथ हुई| 


श्रोताओं ने जल्दी सुबह पहुंचकर ही डिग्गी पैलेस होटल के नेक्सा फ्रंट लॉन की सीटें घेर ली थीं| ढाक और नागाड़ें की थाप से सजा फ्रंट लॉन पूरी तरह से अपने मेहमानों के स्वागत के लिए तैयार था| मेहमानों का स्वागत विशालकाय कठपुतलियों ने अपने ख़ास अंदाज में किया| जाने-माने कठपुतलीकार, दादीपुदुमजी ने ‘इमेजेस ऑफ़ ट्रुथ’ के माध्यम से गांधी के सन्देश को प्रसारित किया| 
मुंबई की शास्त्रीय गायिका, निराली कार्तिक ने राग गुर्जरी तोड़ी के जरिये मंच पर आग लगा दी| आपने दो बंदिशों ‘मेरी अंखिया लागे’ और ‘भोर भयी’ के बाद राग भैरव में, पंडित जसराज जी का मास्टरपीस ‘मेरो अल्लाह मेहरबां’ से समां बाँध दिया| 
 
संगीत ने फेस्टिवल के 13वें संस्करण के उद्घाटन सत्र की ज़मीन तैयार की और फिर माननीय मुख्यमंत्री, उद्घाटन संभाषण वक्ता मार्कस दू सौतोय और शुभा मुद्गल और फेस्टिवल डायरेक्टर नमिता गोखले और विलियम डेलरिम्पल ने फेस्टिवल के सन्देश को श्रोताओं तक पहुँचाया| 


मुहूर्त के समय, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत  ने कहा, “जब फेस्टिवल की शुरुआत हुई तो मैं ही मुख्यमंत्री था, तो मैंने इसे शुरुआत से देखा है| नमिता गोखले, संजॉय के. रॉय और विलियम डेलरिम्पल ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के माध्यम से विश्व में जयपुर की जगह बनाई|” 
अपने स्वागत संभाषण में, फेस्टिवल के प्रोडूसर और टीमवर्क आर्ट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर, संजॉय के.रॉय ने साहित्य की ताकत पर बल दिया, जो किसी भी विषमता से लड़ सकती है| और ऐसा करना हम सबकी जिम्मेदारी है, उन्होंने आगे कहा, “हम सब को एक-दूसरे के लिए प्यार और सम्मान की भाषा में ही बात करनी चाहिए| हालाँकि पूरे देश और दुनिया में अलग-अलग पहचान की ऊंची दीवारें उठ रही हैं, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि अंत में हम सब मनुष्य हैं, इस धरती पर मनुष्यता के स्रोत| कला, साहित्य, संगीत, थियेटर और नृत्य के माध्यम से हम ‘परायेपन’ का भेद मिटाकर एक सही समझ पैदा कर सकते हैं|”



श्रोताओं का स्वागत करते हुए, फेस्टिवल के सह-निदेशक विलियम डेल रिम्पल ने कहा, “इसदेशमें इतने भव्य तरीके सेसाहित्य का जश्न क्यों मनाया जा रहा है? इसके लिए मेरा मानना हैकि इस देश में मौखिकसाहित्यकेउत्सव की प्राचीन परम्परा है, और ये उत्साह भी उसी के देन है| लेखनकेआविष्कारसेपहले, वेदोंकेसमयसे, कविताऔरधार्मिकग्रंथ‘गुरुसेचेला’को दिए गए थे, लोगोंनेमौखिकरूपसेसीखा। इसीलिए साहित्य उत्सव को एक विदेशी विचार नहीं माना जा सकता| यहाँ पर इसकी जड़ें ज्यादा गहरी हैं| भारत में साहित्य से प्यार किया जाता है|”


फेस्टिवल की सह-निदेशक नमिता गोखले ने कहा, “हम उथल-पुथल भरे समाज में जी रहे हैं| राजनीति के ध्रुवीकरण की वजह से हमारा ध्यान क्लाइमेट इमरजेंसी जैसे जरूरी मुद्दों से हटा है| ऐसे समय में जब हर कोई अपने अहंकार के महल में रह रहा है, तब हम विचारों के माध्यम से इस बदलती दुनिया की थाह ले सकते हैं| अपने सह-निदेशक विलियम डेलरिम्पल के साथ मिलकर मैंने ऐसा प्रोग्राम तैयार किया है, जो विविध विषयों को इस फेस्टिवल के दौरान उठाएगा|”
 उद्घाटन संभाषण देते हुए, प्रसिद्ध लेखक मार्कस दू सौतोय ने कहा, “जेएलएफ के 13वें संस्करण का स्वागत करते हुए, मैं श्रीनिवास रामानुजन की अंकों के बारे में कही बात याद करता हूं: गणित की कहानी में प्रत्येक अंक का अपना महत्व है| मेरे लिए वो तेरह है; तेरह एक प्राइम नम्बर है, एक अविभाज्य अंक, और जेएलएफ यकीनन एक प्राइम फेस्टिवल है|”
 


अपने वक्तव्य में लोकप्रिय हिंदुस्तानी गायिका शुभा मुद्गल ने कहा, “कला में पदानुक्रम की कोई जगह नहीं होनी चाहिए| जब तक कला अपनी पूरी समृद्धता और विविधता के साथ मौजूद है, तब तक हम बेहतर भविष्य के सपने देख सकते हैं|”  


उद्घाटन के बाद का सत्र हमें 1940 के दशक के न्यूयॉर्क शहर में रंगमंच की दुनिया में ले गया, जोशो-गर्ल, प्लेबॉय, अभिनेत्रियों और नर्तकियों की कहानी थी। एलिजाबेथ गिल्बर्ट का नया उपन्यास, सिटी ऑफ़ गर्ल्स, महत्वाकांक्षी युवा महिलाओं पर आधारित है, जो अपनी सेक्सुअल लापरवाही के चलते गहन परिणाम का सामना करती हैं| अनेकों प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और अख़बारों ने इस उपन्यास को सराहा| एलिज़ाबेथ ने अपनी किताबों के साथ, अपनी निजी जिन्दगी के भी कुछ दिलचस्प किस्से श्रोताओं से साझा किये|