जयपुर, 30 अप्रैल, कोविड10 के संदिग्ध मरीज को आइसोलेट अथवा क्वारेंटीन करने की बात सुनकर ही जहां घबराहट से महसूस होती है, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस स्थिति में निराश ना होकर इस अवधि का इस्तेमाल रचनात्मक कार्यों के लिए करते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ है, राजसमंद जिले के कांकरवा गाँव में।
कांकरवा गाँव के राजकीय उच्च मध्यमिक विद्यालय में कोविड19 के कुछ संदिग्ध व्यक्तियों को आइसोलेशन में रखा गया था। इन लोगों में कांकरवा के अलावा चांबुआ और पटेलों की भागल के कुछ ग्रामीण शामिल थे। इन सभी लोगों ने आइसोलेशन की अवधि में ठाले बैठे रहने की बजाय स्कूल का कायापलट करने की योजना बनाई। पहले सभी ने अपने-अपने हुनर के हिसाब से काम की रूपरेखा तैयार की और उसको अंजाम देने में जुट गए।
कारीगरी में निपुण रूपलाल ने विधालय भवन की मरम्मत के काम का जिम्मा लिया तो हीरा सिंह ने स्कूल की विधुत व्यवस्था और पंखों को दुरूस्त करने का बीड़ा उठाया। ओगड़ी बाई, कंकु देवी और दल्लाराम ने भवन की साफ-सफाई और रंगाई-पुताई का काम हाथ में लिया। बाकी लोग पेड़-पौधों की सार-संभाल में जुट गए। देखते ही देखते स्कूल का स्कूल का नया स्वरूप सामने आने लगा।
स्कूल के प्रधानाचार्य संजय लूणावत और क्वारेंटीन केन्द्र के प्रभारी भालाराम ने भी उनका पूरा साथ दिया और इस अच्छे कार्य के लिए उन्हें प्रोत्साहित करते रहे। दोनों ने इस काम के लिए जरूरी सामाग्री का भी प्रबंध किया। इन सभी श्रमयोगियों की जागरुकता और समझदारी भी प्रशंसनीय है। उन्होंने यह सारा काम सोशल डिस्टेन्सिंग की पालना करते हुए किया। ग्रामीणों की यह भावना भी काबिले तारीफ है कि ग्रामीणों ने श्रमदान के जरिये स्कूल भवन के कायाकल्प करने की ठानी जिससे विधार्थियों को फायदा हो सके।
श्रम से तन-मन को स्वस्थ रखने के इरादे से किए गए इस कार्य की पूरे जिले में सराहना हो रही है। इस अद्भुत मिसाल के माध्यम से कांकरवा और आस-पास के ग्रामीण यह संदेश देने में भी सफल रहे कि कोरोना से घबराने की नहीं बल्कि हिम्मत और समझदारी से इसका मुक़ाबले करने की जरूरत है।