चलता-फिरता बोलता संग्रहालय ?

 



 दिल्ली-अहमदाबाद राष्ट्रीय मार्ग पर राजस्थान की राजधानी जयपुर से 30 किलोमीटर वनस्पति रंगों से हाथ से छपे सूती वस्त्रों के छपाई उद्योग के लिए विश्‍व विख्यात कस्बा बगरू, जिसे अब जयपुर का उपनगर भी कहा जा सकता है । 

दंत कथा के अनुसार इसका नामकरण बगरसिंह‌ के नाम पर बगरू किया गया । प्रामाणिक इतिहास के अनुसार बगरू भी जयपुर रियासत की बारह कोटड़ियों‌ में से एक था । आमेर के राजा पृथ्वीराज के बारह पुत्रों में से एक चतुर्भुज को बगरू की जागीर प्रदान कर चतुरभुजोत‌ कछवाहों की कोटड़ी स्थापित की थी । कुछ सालों पहले बगरू एक छोटा-सा कच्चे झोपड़ों का सिसकता गाँव था, आज पक्की सड़कों, पक्के मकानों, और मेहनत के ठहाकों से महकता गाँव बन गया है । बगरू गाँव के इस चमत्कारपूर्ण‌ विकास की बुनियाद है सड़क, बिजली और पानी की व्यवस्था । और इसके नायक है एक पत्रकार । 

राजस्थान की पत्रकारिता के उज्जवल पन्नों में अंकित जिस नायक की गाथा मैं लिखने जा रहा हूं, वह एक ऐसे पत्रकार हैं - जिन्होंने अनेक झंझावतों से जूझते हुए अपनी पत्रकार की आत्मा को अक्षुण्ण रखा है - पत्रकारिता, राजनीतिक क्षेत्र और समाज में अपना एक अलग मुकाम स्थापित किया है- तीनों में समान पैठ और सम्मान मगर कहीं टकराव नहीं, अंतर्विरोध नहीं । ऐसे अद्भुत व्यक्ति है राजस्थान के जाने-माने पत्रकार सीताराम झालानी Sitaram Jhalani । 

यह नाम पत्रकारिता जगत, प्रबुद्ध वर्ग, प्रशासनिक और राजनीतिक आदि सभी क्षेत्रों में अनजाना नहीं है । जीवन के नवें दशक में, यद्यपि उनका शरीर जवाब देने लगा है, मगर उनका मन-मस्तिष्क आज भी किसी प्रतिभावान युवा को मात देता है, कम्प्यूटर की भांति हाजिर-जवाब है । राज्य के किसी भी घटनाक्रम या अन्य किसी भी तरह की जानकारी की बात करें तो तुरन्त जवाब मिलता है । साल-तिथि के साथ ऐसा वर्णन करते हैं, जैसे उनके मानस-पटल पर तत्कालीन चलचित्र चल रहा हो । कोई उन्हें राजस्थान का संदर्भ पुरुष कहता है, तो कोई "एनसाइक्लोपीडिया" कोई पत्रकारिता का "अद्भुत चितेरा" बताता है तो, कोई राजस्थान का "बोलता संग्रहालय", "ज्ञान की कोठरी" और न जाने क्या-क्या ? यहाँ तक कि उनके पत्रकारिता के पुराण-वाचन से प्रभावित लोगों ने उन्हें राजस्थान सम्बन्धी ज्ञान के "वेदव्यास" तक का तमगा दे दिया है । 

9 फरवरी, 1978 को पेशे से पत्रकार यहीं के बाशिंदे सीताराम झालानी बगरूवासियों के आग्रह पर सरपंच चुने गए । पत्रकार होने के बावजूद उनकी भावना बगरू को आदर्श कस्बा बना बगरू की मिट्टी का ऋण चुकाने की रही है । आज से 86 वर्ष पूर्व 30 अप्रैल,1934 को जयपुर के पास बगरू में एक सामान्य खण्डेलवाल वैश्य परिवार में औंकार मल झालानी के घर रामप्यारी देवी की कोख से जन्मे सीताराम झालानी ।

 गाँव के जीवन में ही पले-बढ़े और वहीं जोशी की चटशाला तथा बगरू के सरकारी स्कूल में मिडिल तक की पढ़ाई की । बालपन में गाँव के जागीरदार द्वारा निरीह जनता पर ढाए जाने वाले जुल्मों सेठ-साहूकारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण और ग्रामीण जनजीवन की अंतहीन कष्टगाथाओं ने इनके भावुक दिल को कुछ कर गुजरने की तमन्ना के फलस्वरूप कलम हथियार बनाने का संकल्प लिया । 

स्कूल में मिडिल तक का अध्ययन पूरा कर 1952 में प्राइवेट हिन्दी विशारद की परीक्षा पास की । इन्होंने प्राइवेट ही हाई स्कूल परीक्षा 1953 में तथा इन्टरमीडिएट 1958 में उत्तीर्ण की । इनका विवाह चाकसू निवासी नारायण लाल एवं मनभर देवी डंगायच की सुपुत्री चन्द्रकान्ता से 6 नवम्बर, 1953 को सम्पन्न हुआ था । चन्द्रकान्ता जी भक्ति और साधना से परिपूर्ण धार्मिक महिला है ।

 झालानी ने छात्र जीवन में ही पत्रकारिता की ओर विशेष झुकाव होने के कारण दैनिक 'लोकवाणी' एवं 'राष्ट्रदूत' तथा साप्ताहिक 'अमर ज्योति' व 'प्रजा सेवक' के बगरू संवाददाता रहते हुए सन् 1951-52 में हस्तलिखित पत्रिका "बगरू संदेश" निकाली । ये सन् 1954 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखपत्र "कांग्रेस सन्देश" साप्ताहिक के प्रधान सम्पादक (पूर्व मुख्यमंत्री) हरिदेव जोशी के साथ सहायक सम्पादक रहे । इसी वर्ष मोहनलाल सुखाडिया मुख्यमंत्री बने ।

 जयनारायण व्यास के समक्ष अपनी मजबूती के लिए अपने मुखपत्र के रूप में एक अखबार लाने की सुखाडिया की मंशा के कारण 22 फरवरी 1955 को 'दैनिक नवयुग' का प्रकाशन शुरू हुआ । दैनिक नवयुग के प्रधान सम्पादक हरिदेव जोशी ही थे, इसके सम्पादकीय विभाग में सीताराम झालानी उप सम्पादक नियुक्त हुए । बाद में इन्होंने साहित्य सम्पादक के रूप में अनेक संग्रहणीय विशेषांकों का सम्पादन किया । यह एक त्रासदी ही थी कि प्रदेश का मुख्यमंत्री भी एक अखबार को जिंदा नहीं रख सका और कुछ सालों बाद 1962-63 में 'नवयुग' का प्रकाशन बंद हो गया ।

 नवयुग का प्रकाशन बन्द होते ही झालानी की बेरोजगारी शुरू हो गई । 1966 में इन्होंने राष्ट्रीय संवाद समिति (न्यूज एजेंसी) 'हिन्दुस्तान समाचार' में काम शुरू किया । झालानी हिन्दुस्तान समाचार के राजस्थान ब्यूरो में प्रारम्भ में उप सम्पादक, फिर वरिष्ठ उप सम्पादक तथा प्रदेश ब्यूरो प्रमुख पद से सन् 1994 में सेवानिवृत्त हुए ‌। 

खादी का कुर्ता, धोती और चप्पल यहीं उनका पहनावा सर्दी, गर्मी या हो बरसात । जयपुर में शास्त्रीनगर‌ स्थित इनके निवास औंकारश्री‌ में ढेर सारी अखबार की कतरनों की संदर्भ सामग्री की करीब 800 फाइलें करीने से रखी हुई है । झालानी आज भी घर में दस अखबार मंगाते हैं । घटनाओं, लेखों और समाचारों की कतरनें काटने तथा विषयवार फाइलें बनाना इनका आश्‍चर्यचकित शौक है, जो इन्होंने वर्षों से पाल रखा है । 1954 से आज तक उनका यह शौक बदस्तूर जारी है । 

इन फाइलों में राजस्थान के देवालय, किले, नदियां, पहाड़, अभ्यारण्य, राजघराने, राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी, धर्म, त्यौहार, दुर्ग, मेले, संगीत, नृत्य, पुरातत्व, खनिज आदि ढ़ेर सारे विषयों की फाइलें मौजूद है । राजस्थान से सम्बन्धित जितने भी विषयों की हम कल्पना कर सकते हैं उनकी संदर्भित फाइलें है इनके पास, किसी भी विषय के प्रोफेसर के पास तो केवल सम्बन्धित विषय की ही फाइलें मिल सकती हैं, लेकिन इनके पास तमाम विषयों की तमाम फाइलें हैं। दरअसल झालानी अपने दशकों की पत्रकारिता में अर्जित ज्ञान और निरन्तर संकलित संजोये‌ पिटारे (खबरों की कतरनों) को खंगालने और उनमें समाहित सारभूत लक्ष्यों को लोगों के सामने लाने का मानस बना चुके थे । इनके खजाने में से सन् 1988 में पहली अमूल्य निधि सामने आई "राजस्थान वार्षिकी" राजस्थान विषयक वृहद संदर्भ ग्रंथ । 

राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने 14 जुलाई,1988 को इसका विमोचन किया । इस पुस्तक के दूसरे संस्करण का विमोचन 5 अक्टूबर, 1989 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया । राजस्थान वार्षिकी के तीसरे संस्करण का विमोचन तत्कालीन मुख्यमंत्री भैंरोसिंह शेखावत ने 28 अगस्त 1991‌ को झालानी के निवास स्थान पर आकर किया । इससे स्पष्ट है कि झालानी के भैंरोसिंह शेखावत से मधुर सम्बन्ध थे । 

चौथे और पांचवें संस्करणों का विमोचन भी भैरोंसिंह शेखावत के करकमलों से सम्पन्न हुआ । मुद्रण में विलम्ब के कारण छठे संस्करण का वितरण बिना किसी औपचारिकता के शुरू कर दिया गया । सीताराम झालानी की एक नयी‌ कृति जोधपुर के प्रसिद्ध प्रकाशक 'राजस्थानी ग्रन्थागार' से नायाब और बहुउपयोगी "अनुपम राजस्थान" गतवर्ष प्रकाशित हुई है । वीरों की धरती को करीब से जानने के लिए वरिष्ठ पत्रकार सीताराम झालानी की यह कृति सम्पूर्णता लिए हुए है । 

करीब सवा चार सौ पृष्ठों की इस पुस्तक में राजस्थान की जानकारी के बारे में जितने विस्तार और रोचकता से लिखा गया है, वह गागर में सागर समेटने जैसा है । वर्ष 1999 में रियासती राजपूताने से निर्मित वर्तमान राजस्थान की स्थापना के स्वर्ण जयंती वर्ष में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा पं. नवलकिशोर शर्मा की अध्यक्षता में गठित स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति के गठन का निर्णय लिया गया ‌। 

पं. नवलकिशोर शर्मा ने काम की सुगमता के लिए दो अवकाश प्राप्त आई.ए.एस.- एल‌.सी‌.गुप्ता, के.एल‌.कोचर एवं सीताराम झालानी इन तीनों परम मित्रों का संपादक मण्डल बना दिया । इस समिति ने काल खण्ड के थपेड़ो में गुम हुए प्रदेश के अनेक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और कार्यों को इतिहास के पन्नों में दर्ज करने का जिम्मा बहुत ही जिम्मेदारी के साथ निभाया । 

'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा' ग्रन्थ माला में 56 दिवंगत स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनलीला, राजस्थान के प्रजामण्डलों का इतिहास एवं 'भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान' शीर्षक से राजस्थान का स्वतंत्रता संग्राम का प्रामाणिक इतिहास प्रकाशित किया गया है । मनोहर कोठारी द्वारा लिखित इतिहास में हर रियासत का वर्णन अंकित किया गया है । उपरोक्त पुस्तकों के अलावा "राजस्थान के प्रकाश स्तम्भ" ग्रन्थ माला के आठ खण्डों में प्रदेश की साहित्य, स्वाधीनता सेनानी, राजनीतिक, संस्कृति, पत्रकारिता, इतिहास, अर्थशास्त्र, उद्योग, कला, प्रशासन आदि विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान करने वाली 432 ऐसी विभूतियों का संक्षिप्त जीवन परिचय दिया गया है जिनका नाम प्रदेश अथवा राष्ट्रीय स्तर पर जाना-पहिचाना है । 

राजस्थान विषयक विभिन्न विषयों पर संदर्भ सामग्री का संकलन आपकी विशेष रुचि रही है जिसकी एक झलक राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति द्वारा प्रकाशित उनके ग्रन्थ 'राजस्थान : नूतन-पुरातन'  में देखी जा सकती है। राजस्थान के इतिहास, भूगोल और कला-संस्कृति से लेकर इस राज्य के निर्माण और इसकी विकास-यात्रा तथा भविष्य की संभावनाओं के सम्बन्ध में जो विस्तृत एवं शोधपरक सामग्री इस ग्रन्थ में प्रकाशित की गई है वह बहुत उपयोगी है । 

सीताराम झालानी राजस्थान के श्रमजीवी पत्रकारों के सबसे पुराने और बड़े संगठन राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ के 1956 में स्थापना काल से कार्यकारिणी सदस्य, कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महामंत्री तथा दो बार अध्यक्ष रहे । सन् 1964 से 1973 तक झालानी जयपुर सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक के संचालक मण्डल के निर्वाचित सदस्य रहे । इसके अलावा जयपुर, चौमूं,अचरोल, सांभरलेक, शाहपुरा और दौसा स्थित क्षेत्रीय सहकारी क्रय विक्रय समितियों में संचालन मंडलों के सदस्य रहे तथा ग्रामीण किसानों का प्रतिनिधित्व किया । इसके अतिरिक्त झालानी कृषि उपज मण्डी जयपुर तथा चौमूं के संचालक मण्डलों में जयपुर सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक का प्रतिनिधित्व कर चुके है । 

1978 में बगरू के सरपंच चुने गए सीताराम झालानी के प्रस्ताव पर राज्य सरकार ने अगस्त 1980 में बगरू ग्राम पंचायत को नगर पालिका के रूप में क्रमोन्नत किया । वे  इसके संस्थापक-अध्यक्ष बने । 1982 में हुए प्रथम बगरू नगर पालिका चुनाव में ये पार्षद चुने गए और 1996 में दूसरी बार पालिका अध्यक्ष चुने गए । सरपंच और पालिकाध्यक्ष के कार्यकाल में पूरे कस्बे में पक्की विदेशी सीमेंट की सड़कों का निर्माण कराया । इस पूरे क्षेत्र को सड़कों से जोड़ने में अपनी पूरी ताकत लगा दी ।

 उस काल में बनवाई गई सीमेंट की सड़कें आज भी कायम है । छात्रों तथा छात्राओं के शाला‌ भवनों के नव-निर्माण में अपने सम्पर्कों से उल्लेखनीय योगदान किया । सदियों से उपेक्षित बगरू के वस्त्र छपायी उद्योग को नयी गति दी तथा संचार-माध्यमों से न केवल प्रदेश और देश अपितु समूचे विश्‍व में पहचान दिलायी‌ जिसके फलस्वरूप इस उद्योग से जुड़े हुए छींपा समाज को नया‌ जीवन ‌मिल पाया । पिछड़े छींपा समाज के लोगों को वहीं बगरू जहाँ दो जून की रोटी जुटा पाना उनके लिए आसमान के तारे तोड़ लाने के बराबर था । 

राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपड़े पर कलात्मक बगरू छपाई की बढ़ती हुई मांग से यकीनन छींपों‌ की जीवनशैली में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है । औद्योगिक क्षेत्र घोषित करवाया । बगरू में कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सकें इसके लिए झालानी ने जयपुर कृषि-उपज मंडी समिति की गौण मंडी (अनाज) की स्थापना करवाई । इनके कामों में पारदर्शिता इतनी होती थी कि सारा काम विरोधियों की राय से करते थे । आश्‍चर्यजनक तथ्य यह है कि बगरू में आज कोई कच्चा मकान नहीं है । 

औद्योगिकीकरण के कारण गाड़ियों से  कस्बा अटा है । अस्थायी श्रमिकों के लिए कारखाने वालों ने शेड़ बना रखे हैं । न‌ई दिल्ली में प्रवासी राजस्थानियों की प्रतिनिधि संस्था "राजस्थान रत्नाकर" ने 21 जुलाई, 2019 को दिल्ली के विख्यात अम्बेडकर इंटरनेशनल हॉल में आयोजित समारोह में झालानी को सम्मानित करने के साथ ही पच्चीस हजार रुपए का पुरस्कार भेंट किया । झालानी ने यह राशि जयपुर के आगरा रोड स्थित प्रसिद्ध सेवाभावी संस्था शंकर सेवा धाम को भेंट कर दी । इससे पूर्व भी एक समाचार पत्र की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर सम्मानस्वरूप प्राप्त 21 हजार रुपए की राशि में अपनी ओर से भी 21 हजार रुपए और मिलाकर 42 हजार रुपए का चैक पूर्व मुख्य सचिव एम.एल.मेहता द्वारा निर्धन किन्तु प्रतिभावान छात्रों की सहायतार्थ स्थापित संस्था "सुमेधा" को भेंट कर दी थी ।

 सीताराम झालानी ईमानदारी, शिष्ट व्यवहार, परिश्रम करने की  प्रवृत्ति तथा किसी भी नये कार्य को शीघ्र ही पूर्ण रूपेण समझकर दक्षतापूर्वक क्रियान्वित कर सकने की क्षमता व प्रतिभा के धनी हैं । सहज,सरल लेकिन अपने जीवनमूल्यों पर समझौता नहीं करने वाले झालानी मित्रों के मित्र है और परदु:ख कातरता को मिटाने में माहिर हैं । इनकी मधुर स्मित मुस्कान सभी को स्नेहपूर्ण‌ सद्भावना बांटती है । झालानी को शायद ही कभी किसी ने क्रोध में देखा हो । उनको सम्पर्क निभाने आते हैं । अपने विस्तृत परिवार तथा मित्रमंडली से स्नेह सम्बन्ध उनके जीवन के ओजस स्त्रोत कहे जा सकते है ।

 एक व्हाटसग्रुप से साभार