प्राकट्य दिवस को लेकर युवा भ्रमित


जयपुर , 4 मई । राजस्थान Rajasthan  सहित देश भर में चित्रांश समाज अपने आराध्य देव श्री चित्रगुप्त Chitragupt  जी प्राकट्य दिवस साल में दो बार मनाते है ।

चित्रांश Kayastha समाज का एक धडा  मनुष्य के अच्छे और बुरे क्रमों का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त जी का प्राकट्य दिवस धर्मराज दशमी को मनाता है वहीं समाज का दूसरा प्रबुद्व वर्ग है गंगा सप्तमी 19 मई को प्राकट्य दिवस मनायेगा ।आखिर ऐसा क्यों ।

साभार कायस्थ टुडे 1 मई 2021 के अंक से

एक वर्ग ऐतिहासिक पन्नों के सहारे धर्मराज दषमी Dharmaraj Dashami को प्राकट्य दिवस मनाता है और दूसरा धडा अपने पुरखों द्वारा गंगा संप्तमी को मनाये जाने की दुहाई देते हुए उसी पथ पर जाने की बात कह रहे है । 

 राजस्थान कायस्थ महासभा जयपुर जिला ईकाई,राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् जयपुर- अंबर जयपुर चैप्टर और मानसरोवर कायस्थ महासभा ने धर्मराजदषमी को चित्रगुप्त जी का प्राकट्य दिवस मनाया जबकि जयपुर की 38 संस्थाओं ने गंगा संप्तमी को प्राकट्य दिवस मनाये जाने की बात कही है ।

आखिर समाज में ही अपने आराध्य देव को लेकर ही दो मत होंगे तो सरकार आपकी चिन्ता क्यूं करेगी । सरकार के लिए यह स्थिति मनमाफिक है । सरकार पर तभी दवाब संभव है जब एकजुटता से कोई मांग रखी जाती है ।जब समाज ही विभाजित है तो इसका नुकसान किसे होगा इसकी चर्चा करना निरर्थक है ।

  व्हाटस वालॅ के अनुसार राजस्थान कायस्थ महासभा के अध्यक्ष अरविंदकुमारसंभव धर्मराज दशमी को प्राकट्य दिवस मनाने के पीछे तर्क देते है कि उज्जैन के प्राचीनतम धर्मराज चित्रगुप्त मंदिर में जाकर देखो वहाँ आज भी चित्रगुप्त जी की प्राचीन प्रतिमा धर्मराज के नाम से जानी जाती है । इसीलिये इस बात को लेकर कोई विवाद ही नहीं है । धर्मराज चित्रगुप्त जी की विश्वयापी पूजा का केंद्र बिंदु यम द्वितीय के साथ साथ  धर्मराज दशमी को प्रचारित करना ही हमारे वंश पितामह के प्रति हमारी कृतज्ञता होगी ।

  व्हाटस वालॅ के अनुसार  ऋग्वेद, उपनिषद व महाभारत काल तक चित्रगुप्त जी का कहीं उल्लेख नहीं है। उस समय तक धर्मराज व यमराज का ही उल्लेख है। बाद में लिखी पुराणों में चैदह यमों  का वर्णन है जिन्हें धर्मराज की उपाधि दी गयी थी और चित्रगुप्त जी भी उनमें से एक हैं। ऐसे में धर्मराज दशमी ही उनका दिवस है। गंगा सप्तमी का चित्रगुप्त जी से कोई संबंध नहीं है।भारत के सबसे पुराने दोनों चित्रगुप्त मंदिर उज्जैन व अयोध्या आज भी धर्मराज मंदिर व धर्म हरि मंदिर के नाम से सैंकड़ों वर्षों से जाने जाते हैं। दोनों का वर्णन स्कंदपुराण में हैं।

  पुराणों में भी चित्रगुप्त जी को न्याय व धर्म के अधिकारी के रूप में दर्शाया गया है। धर्माधिकारी और धर्मराज या धर्मदेव में क्या अंतर है?  बृह्मलोक व्यवस्था में कोइ देव सहायक स्वयंमेव में देवता नहीं हो सकता और हमारे वंश प्रवर्तक देवता हैं कोई सहायक या कर्मचारी नहीं। वे धर्मराज पद पर आसीन देव हैं जो न्याय व धर्म का नियंत्रण करते हैं। इसीलिए मंत्र है ओम यमाय धर्मराजाय श्री चित्रगुप्ताय व नमरू.  मतलब यम यानि नियम, धर्म यानि संहिता के अधिष्ठाता श्री चित्रगुप्त को प्रणाम।

    अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय सचिव देवेन्द्र सक्सेना मधुकर ने श्री चित्रगुप्त जी के प्राकट्य दिवस गंगा सप्तमी को ही जायज ठहराते हुए कहा कि राजस्थान में 16 सालों से प्राकट्य दिवस को लेकर कोई विवाद नहीं था लेकिन विगत चार साल से  प्राकट्य दिवस को लेकर विवाद बन गया है ।   उन्होने कहा कि चार साल से पहले सभी लोग एक साथ गंगासप्तमी को प्राकटय दिवस मना रहे थे लेकिन फिर अचानक धर्मराज दशमी को लेकर विवाद का मुददा बना दिया गया। 

    सक्सेना ने कहा कि यह विवाद केवल राजस्थान में ही नहीं बल्कि अखिल भारतीय स्तर पर चल रहा है । यदि कोई धर्मराज दशमी को प्राकट्य दिवस मना रहा है ,तो हम उनका हाथ तो नहीं पकड सकते । राजस्थान में 38 संगठन गंगा सप्तमी 19 मई को श्री चित्रगुप्त जी का प्राकट्य दिवस मनायेंगी ।

चित्रांष संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष अवध बिहारी माथुर का कहना है कि हमारे बुजुर्ग गंगा सप्तमी को श्री चित्रगुप्त का प्राकट्य दिवस मनाते आ रहे है इसलिए हम भी गंगा सप्तमी को प्राकटय दिवस मनाते है ।  श्री चित्रगुप्त जी महाराज का प्राकट्य दिवस कब कौन मना रहा है मैं इसकी आलोचना नहीं करना चाहता , अच्छा है कब भी मनाये प्राकट्य दिवस मनाये । 

आखिर इस मुददे का समाधान कैसे हो इसका कोई न कोई रास्ता निकालना चाहिए ताकि युवा पीढी चित्रगुप्त जी के प्राकटय दिवस को लेकर भ्रमित नहीं हो ।युवा पीढी को रास्ता दिखाने वाले कौन है संगठन ही तो है , आखिर इनमें ही किसी बात को लेकर भिन्नता होगी तो युवा के भटकाव के लिए जिम्मेदार कौन है ।