देश एवं दुनिया के सामने स्वच्छ जल एवं बढ़ते प्रदूषण की समस्या गंभीर से गंभीरतर होती जा रही है। शुद्ध हवा एवं पीने के स्वच्छ जल की निरन्तर घटती मात्रा को लेकर बड़े खतरे खड़े हैं। धरती पर जीवन के लिये जल एवं हवा सबसे जरूरी वस्तु है, जल एवं हवा है तो जीवन है। जल एवं हवा ही किसी भी प्रकार के जीवन और उसके अस्तित्व को संभव बनाता है। जीवन के तीन आधार तत्व हैं-हवा, पानी और धरती है। इनकी संरक्षा न केवल हमारी अस्तित्व-निर्भरता से जुड़ी है, बल्कि मानवता की नैतिक जिम्मेदारी भी है। आज का युग, जिस तेज़ी से विकसित हो रहा है, उसी भागदौड़ में हवा और पानी को परम स्वाधीनता से वंचित कर रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध, दिल्ली का उच्च प्रदूषण सूचकांक, अमेरिका के जंगलों की धुएं से गंदली हवा, बढ़ता वाहन प्रदूषण-ये सब संकेत देते हैं कि हवा से आज़ादी मतलब ‘स्वस्थ हवा’ पाना है। हमारे “आज़ादी” को नया अर्थ चाहिए तो यह प्राकृतिक संसाधनों यानी हवा एवं पानी की आज़ादी पर भी निर्भर है, जो मानव व पर्यावरण-जगत दोनों के लिए जीवनदायिनी है। स्वतंत्रता का अर्थ केवल राजनीतिक बंधनों से मुक्ति नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू में सुरक्षित, स्वस्थ और सम्मानजनक अस्तित्व का अधिकार है। 78वें स्वतंत्रता दिवस पर जब हम आज़ादी का जश्न मना रहे हैं, तब यह सवाल भी उठाना जरूरी है कि क्या हमें हवा और पानी की सच्ची आज़ादी मिली है?
आज़ादी केवल तिथि नहीं, एक निरंतर संघर्ष है। यह सिर्फ़ झंडा फहराने का अधिकार नहीं, बल्कि हर नागरिक को मूलभूत सुविधाएं, समान अवसर और सम्मान देने की जिम्मेदारी है। हवा, पानी और धरती- इनके बिना जीवन संभव नहीं। पर दुर्भाग्य से आज इन मूलभूत संसाधनों पर गहरा संकट है। स्वच्छ हवा में सांस लेना और शुद्ध पानी पीना अब विलासिता जैसी चीज़ बनती जा रही है। ‘हवा-पानी की आज़ादी’ का मतलब है कि हर व्यक्ति को स्वच्छ हवा और शुद्ध पानी तक सहज पहुंच हो। यह केवल स्वास्थ्य का ही नहीं, बल्कि मानवता का मूल अधिकार है। परंतु शहरीकरण, औद्योगीकरण और संसाधनों के दुरुपयोग ने हवा और पानी दोनों को विषाक्त बना दिया है। विश्व में 2.2 अरब लोगों के पास सुरक्षित पेयजल की सुविधा नहीं है। भारत में करोड़ों लोग अभी भी दूषित या अपर्याप्त पानी पर निर्भर हैं। रसायनयुक्तभारत के पास जल प्रबंधन की प्राचीन परंपरा रही है-तालाब, कुएं, बावड़ियां, जोहड़ और सरोवर जल संरक्षण के अद्भुत उदाहरण हैं। राजस्थान के किलों और गांवों में जल संचयन व्यवस्था आज भी दुनिया के लिए प्रेरणा है। पर्यावरणविद अनुपम मिश्र कहते थे-“अब भी खरे हैं तालाब।” आज आवश्यकता है कि हम इन परंपराओं को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर जल संकट का समाधान करें।