मेरी मंजिल, टेराकोटा स्कल्पचर से हो पहचान । आरती गुप्ता


बेंगलूरू, 25 नवम्बर ।आप को कुछ हासिल करना है तो आप अपने मकसद में जुट जाइये । रास्ते में दिक्क्ते आयेगी , हर समय आपको रास्ता सरपट चलने वाला नहीं मिलेगा । कई उतार चढाव आयेगे । खडडे भी मिलेंगे तो अवरोधक भी लगे मिलेंगे । आप अपनी मंजिल को पाने के लिए रास्ता बनाते हुए सुरक्षित रह कर चलते जाइये आप अपनी मंजिल पर पहुंच जायेंगे । ।



 कमाबेश इसी तरह का मकसद लेकर मध्य प्रदेश की बेटी और अब बेंगलूरू की बहू आरती गुप्ता अपनी मंजिल को पाने के लिए तेजी से और जहां रास्ता पथरीला होता है कदम थोडे धीरे कर आगे बढ रही है ,लेकिन रूक नहीं रहीं है । आखिर में आरती गुप्ता  की मंजिल क्या है कैसे वो इस सफर पर निकली यह जानिये  ।
    कला किसी की मोहताज नहीं होती , कला मन , सोच,कल्पना, इमोशन से निकलती है ओर वो ही सोच कल्पना हाथों से आकार लेती है ओर फिर बन जाती है सबकी पसंद । कला के क्षेत्र में आरती गुप्ता का नाम अब नया नहीं है । जब भी टेराकोटा स्कल्पचर की बात चलती है तो आरती गुप्ता का नाम तेजी से उभरकर मन मस्तिक पर तैर जाता है । यह आरती गुप्ता का ही कमाल है कि जब भी आप इनके टेराकोटा स्कल्पचर दूर से देखेंगे तो आपके कदम रूकेंगे नहीं लेकिन जब आप इनके स्कल्पचर के नजदीक पहुंच गये तो आपके कदम बर्फ के समान जम जायेंगें और आप कितने घंटो तक रूके रहेंगे आप को भी यह अहसास नहीं होगा ,क्यूंकि आप इनके इमोशेन से पतली, कोमल अंगुलियों से तैयार टेराकोटा स्कल्पचर में खो जायेंगे ।
 आरती गुप्ता टेराकोटा स्कल्पचर के सफर को अपने शब्दों से बया करते हुए कहा  मैने मध्य प्रदेश से ही टेराकोटा में काम करना शुरू किया । हर समय में अपने काम में व्यस्त रहती , हर दिन एक नया स्कल्पचर तैयार कर रहीं थी । समय का पता नहीं चला , आखिर वो समय आ गया जब मैं डोली में बैठकर प्रियतम के घर पहुंच गयी । मन में एक ओर वैवाहिक जीवन के सपने थे तो दूसरी ओर टेरोकोटा स्कल्पचर । मन में काफी शंकाये थी लेकिन ससुराल में मुझे केरी कला को इतना सम्मान मिला उसको मैं शब्दों में नहीं बता सकती । मैने भी नये माहौल में  स्वंय को मिटटी के समान ढाल लिया । घर के काम के वक्त केवल और केवल घर का काम और गिली मिटटी को टेराकोटा स्कल्पचर का मूर्त रूप देते वक्त घर के काम जेहन में नहीं रहते । 



  आरती ने कहा मुझे मालुम है कि मेरी काफी जिम्मेदारियां है , बच्चे का पालन पोषण, घर के काम काज  कभी भी कला के क्षेत्र में इनको आडे नहीं आने देती हूॅ । हर दिन दो घंटे काम करती हूॅ ,समय हुआ काम वहीं बंद । फिर अगले दिन का इंतजार रहता है । आपको किेसी पर अतिक्रमण नहीं करना चाहिए, तभी आपके इमोशन अपने आप निखर कर सामने आयेंगे । उन्होने बताया ​एक पीस तैयार करने में तीन महिने का समय लगता है । जब सामने रखती हूॅ तो मन ही मन सोचती हूॅ अरे वाह । यह तो मैने सोचा ही नहीं था । फिर सोचती हूॅ यही तो अपनापन, अहसास , इमोशन, है ।
 आरती गुप्ता ने कहा कि मैने पहले से यह सोचा नहीं था कि टेराकोटा स्कल्पचर में काम करना है लेकिन अचानक मेरे मन में यह सब कुछ आया और उसके बाद मैं अपनी मंजिल को पाने के लिए चल पडी । उन्होने कहा मैं जीवन में कुछ अलग करना चाहती थी , मैं अपनी मंजिल स्वंय तय करना चाह कर टेराकोटा स्कल्पचर को अपनाया । शुरूआत में कुछ दिक्कते आयी लेकिन वो कब खत्म हो गयी मुझे स्वंय को इसका अहसास नहीं हुआ ।


आरती ने कहा जब मेैं अपना काम शुरू करने बैठती हूॅ तो मुझे स्वंय को यह पता नहीं होता कि मुझे क्या बनाना है यहां तक कि मिटटी जब हाथ में होती है तो भी मुझे पता नहीं होता कि क्या बनाने जा रहीं हूॅ । अचानक मन में कुछ इमोशन आते है, मिटटी में खो जाती हूॅ ओर फिर मिटटी तेजी से आकार लेने लगती है ओैर कुछ दिन में वो शानदार पीस बन जाता है जिसे मैं घंटो निहारती रहती हूॅ । जब यह पीस प्रदर्शनी में लगता है या कला के पारखी के सामने जाता है तो बस सब की ओर से मुझे ढेरों बधाईयां मिलती है । ओर मेरा होैसल्ला ओर बढ जाता है ।



 आरती गुप्ता की तैयार किये गये टेराकोटा स्कल्पचर जयपुर,केरल, मुम्बई , बेंगलूरू सहित कई स्थानों पर शोकेस हो चुके है । हर जगह कला के ख्यातनाम पारखी होते है उनका भी मुझे आशीर्वाद मिलता है । देश विदेश में टेराकोटा स्कल्पचर की बात शुरू हो गयी है, मेैं चाहती हूॅ कि मुझे टेराकोटा स्कल्पचर से पहचाना जाये । यह मेरी इच्छा है ।  उन्होने कहा हालाकि आन लाइन मेरे द्वारा बनाये गये टेराकोटा स्कल्पचर की बिक्री शुरू हो गयी है , देश विदेशी से काफी मांग आ रही है । बावजूद मेरा ध्यान मार्कटिंग पर नहीं बल्कि इस कला को सात समदंर पार ले जाने की हेै ।
 


आरती ने कहा  मुझे टेराकोटा स्कल्पचर में कई अवार्ड मिल गये है , मुम्बई में मुझे एक ख्यातनाम संस्था ने मेरी कला का सम्मान किया , मुझे इन सब से कला को ओर निखारने का बल मिल रहा है । मैं चाहती हूॅ कला के क्षेत्र में मेरी अलग पहचान हो । टेराकोटा स्कल्पचर का नाम आये तो कला के पारखियों की जुबान पर आरती गुप्ता का नाम आये । मेरी मंजिल यहीं है वो दिन दूर नहीं है जब  ईश्वर और दर्शकों :कला को समझने वाले: के आशीर्वाद से अपनी मंजिल पर पहुंच जाउंगी । मुझे यह पूरा भरोसा है ।